Sunday, March 28, 2010

दो सांसदों की सियासत सड़क पर


रविवार की सियासत सांसद अमर सिंह और सांसद जया बच्चन के नाम रही। जया बच्चन ही क्यों, पूरे बच्चन परिवार के नाम। दो दिन पहले सपा सांसद जया बच्चन जो कुछ दिल्ली में सांसद ठाकुर अमर सिंह को लेकर टिप्पणी कर गई थीं या पहले उनके बारे में जो कुछ कह चुकी थीं, अमर ने आज अपनी दिल्ली रैली में उसका थोक-जवाब दे डाला।


महाकवियत्री
महादेवी वर्मा ने कभी राजस्थान के एक मंच से तत्कालीन मुख्यमंत्री पहाड़िया के बहाने कहा विक्षुब्ध होकर कहा था कि आज की राजनीति विक्षिप्त हो गई है। उन दिनों की महादेवी की ये टिप्पणी काफी समय तक सुर्खियों में रही और वह आज की राजनीति पर भी ज्यों-का-त्यों मुहावरे जैसी लागू होती है। इन दिनों भाजपा, कांग्रेस और सपा की पहचान ओढ़े देश की राजनीतिक सुर्खियों रविवार को यक-ब-यक एक यू टर्न ले लिया। कांग्रेसी सियासत के रू-ब-रू खड़े अमिताभ बच्चन उधर महाराष्ट्र में अपने य़शस्वी पिता हरिवंश राय बच्चन की ’सांप’ कविता के बहाने लक्ष्य पर तीखा निशाना साध रहे थे, इधर दिल्ली में उनकी सांसद पत्नी जया बच्चन पर सांसद अमर सिंह के तीर चल रहे थे। संसद की सियासत सड़क पर थी, देश बड़े गौर से सुन रहा था। अमर सिंह के बारे में दो दिन पूर्व जया ने कहा था कि मैं उन्हें मिस कर रही हूं। या उन्होंने पहले कहा था कि अमर सिंह को पार्टी में रहकर सब बर्दाश्त करना चाहिए था। आज अमर ने दिल्ली में क्षत्रिय महासभा के रैली-मंच से उसका जवाब देते हुए कहा कि जया बच्चन जहां भी हों, सुन लें कि मैं भी उन्हें मिस कर रहा हूं। मेरे साथ यहां मंच पर सांसद जयाप्रदा हैं, मनोज तिवारी हैं, लेकिन वह (जया बच्चन) नहीं हैं। दूसरा तीर अमर ने अमिताभ बच्चन पर साधा। बोले कि जया बच्चन मुझे सपा में रहकर सब बर्दाश्त करने की नसीहत देती हैं, लेकिन उनके पति अमिताभ बच्चन इलाहाबाद से सांसद चुने जाने के बाद अपने जिगरी दोस्त राजीव गांधी का साथ छोड़कर भाग खड़े हुए थे। अर्थात उन्हें भी तो कांग्रेस में रहकर बोफोर्स मामले पर राजीव गांधी का साथ देते हुए सब बर्दास्त करना चाहिए था। आज सांसद अमर की इस टिप्पणी के बाद राजनीतिक हलकों में कई तरह की बातें की जाने लगी हैं। कई तरह के सवाल अपने समाधान के लिए बेचैन हो चले हैं। मसलन, क्या अमर सिंह ने एक बार फिर अपने आज के बयान से कांग्रेस की ओर बढ़ते झुकाव का खुलासा किया है? यानी क्या निकट भविष्य में वह कांग्रेस के और निकट जाने वाले हैं? क्या अमर सिंह चाहते थे कि जब उन्हें समाजवादी पार्टी से निकाला गया तो सांसद जया बच्चन भी सांसद जया प्रदा के साथ खुलकर उनके मोरचे में शामिल हो जातीं? और वह कसक आज तक उनके मन में दबी हुई थी, आज फूट पड़ी? लेकिन कहा जाता है कि जया बच्चन ने तो बड़ी शालीनता से अमर सिंह का, जहां तक संभव हो सकता था, साथ दिया ही। रामपुर, आजमगढ़ की रैलियों में उनके मंच तक गई तो क्या ये बात सपा अध्यक्ष एवं सांसद मुलायम सिंह को नागवार नहीं गुजरी होगी लेकिन उन्होंने या सपा के किसी भी बड़े नेता ने तो जया के बारे में ऐसा कुछ नहीं कहा। जब कि पार्टी अनुशासन की दृष्टि से सपा को अमर सिंह से ज्यादा सख्त होना चाहिए था। जयाप्रदा अमर सिंह के साथ इसलिए खुलकर चल पड़ीं, क्योंकि वह भी सपा से निकाली जा चुकी थीं और उनके पास अमर सिंह के साथ हो लेने के अलावा और कोई चारा नहीं था, लेकिन जया बच्चन के साथ तो ऐसी कोई मजबूरी नहीं थी, फिर भी वह जहां तक संभव था, अमर का साथ दे ही रही थीं। हां, अमर सिंह ने आज जरूर अपने तीखे भाषण से जया बच्चन को अपने सियासी दायरे से हमेशा के लिए दूर झटक दिया है। निश्चित ही ये बात सपा के लिए फायदे की रही। अब साथ जया बच्चन अपने इस पूरे संसदीय कार्यकाल तक सपा में बनी रहें। वह कल कह भी रही थीं कि मैं पूरा संसद का अपना ये कार्यकाल पूरा करना चाहती हूं। उनके छह महीने शेष बचे हैं। उनकी ये मुराद आज अमर सिंह की टिप्पणी से पूरी होती दिख रही है। उधर, महाराष्ट्र के साहित्य सम्मेलन में सांसद जया बच्चन के पति एवं पूर्व सांसद अमिताभ बच्चन ने जो कुछ कहा है, उससे लगता है कि अब वह पूरी तरह कांग्रेस विरोधी रुख के कायल होते जा रहे हैं। इधर भाजपा-शिवसेना नेताओं, सांसद रूड़ी, मल्होत्रा, मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, बाला साहब ठाकरे आदि को जो लगातार बिग बी के पक्ष में बयान आ रहे हैं, भाजपा के निकट रहे अनुपम खेर ने पिछले दिनों जो अमिताभ के समर्थन की बात कही, जया बच्चन ने मध्य प्रदेश में नर्मदा गीत को अमिताभ द्वारा स्वर दिए जाने की जो बात कही, उससे लगता है कि मिले सुर मेरा तुम्हारा वाली कहावत रंग पकड़ती जा रही है। हां, ऐसे में एक बात जरूर बहुत ही गौरतलब हो सकती है कि सांसद शत्रुघ्न सिह्ना को शायद बिग बी का भाजपा प्रेम रास न आ रहा हो। न ही वह चाहेंगे कि एक अभिनेता के रूप में कोई और उनसे बड़े कद का अभिनेता भाजपा भवन में दाखिल हो जाए, इससे उनकी पार्टी में एकछत्र छवि को थोड़ी मायूसी पहुंच सकती है। शत्रु ने पिछले दिनों टीम गडकरी पर जिस तरह लगातार प्रहार किए हैं, निश्चित ही भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी भीतर ही भीतर अमिताभ की भाजपाई-निकटता से अभिभूत हो आगे किसी और अनुकूल अवसर की प्रतीक्षा करना शुरू कर चुके होंगे, जब शत्रुघ्न की टिप्पणियों का अपने आप जवाब अमिताभ के बड़े कद के रूप में मिल जाए। आज की राजनीतिक सरगर्मियां कुछ-एक और मायने समझा गई हैं। मसलन, अमर सिंह के कांग्रेसोन्मुखी तेवर सपा-कांग्रेस की भविष्य में दूरियां बढ़ाने के सबब बन सकते हैं। ये सपा के लिए नुकसानदेह भले लगे, यूपी चुनावों में उसके लिए फायदे की बात हो सकती है। अमर सिंह समय से पहले इस बात को (महिला आरक्षण बिल मामले पर) भांप कर अपना कांग्रेसी स्टैंड प्रकट करने लगे हैं। यह उनकी यूपी की राजनीति के लिए घातक हो सकता है। जैसे यूपी में भाजपा-बसपा की परस्पर तरफदार चुप्पियां उनके नुकसानदेह भविष्य की चुगली-सी जान पड़ती हैं।

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